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Saturday 12 September 2015

कैसे रखता हूँ मैं खुद को Positive ?

हाय, दोस्तों मै बीरेंद्र गुप्ता आज मैं आपके साथ एक बड़ी ही interesting और important बात share कर रहा हूँ. एक ऐसी छोटी सी  बात जिसने मेरे thought process को improve करने और positive बनाने में बहुत मदद की है.
मुझे पूरी उम्मीद है कि ये आपके लिए भी उतना ही लाभदायक होगा.  ऐसा मैं इसलिए भी कह पा रहा हूँ कि क्योंकि इसे समझना  बहुत ही simple है. और इसे practically APPLY  करना भी आसान है.
बात दिसम्बर 2013 की है तब मई अपने दोस्त विनोद के साथ delhi गया हुआ था ,. चूँकि मुझे नयी-नयी books पढने का शौक है , मैं एक दूकान में ऐसी ही कोई book खोज रहा था, तभी David J. Schwartz की लिखी हुई किताब ,” The Magic of Thinking Big”  मुझे नज़र आई.  दो -चार पन्ने पलटने के बाद मैं समझ गया कि इसमें दम है और मैंने वो book खरीद ली.

वैसे तो इसमें मैंने कई लाभप्रद बातें पढ़ीं पर एक बात मेरे दिमाग में  घर कर गयी और आज मैं उसी के बारे में बता रहा हूँ.
हमारा दिमाग विचारों  का निर्माण  करने वाली  एक फैक्ट्री  है . इसमें हर  वक़्त  कोई ना  कोई thought  बनती  रहती  है. और इस  काम  को कराने  के लिए  हमारे  पास   दो  बड़े  ही आज्ञाकारी  सेवक  हैं और साथ ही ये अपने काम  में  माहिर  भी हैं . आप  कभी  भी इनकी  परीक्षा  ले  लीजिये  ये उसमे  सफल  ही होंगे . आइये  इनका  परिचय  कराता  हूँ-
पहले  सेवक  का  नाम  है-  Mr. Triumph  या  मिस्टर विजय
दुसरे  सेवक  का  नाम  है- Mr. Defeat या  मिस्टर  पराजय
Mr . विजय  का काम  है आपके आदेशानुसार  positive thoughts का निर्माण करना. और Mr. पराजय  का काम  है आपके आदेशानुसार  negative thoughts का निर्माण करना. और ये सेवक इतने निपुण हैं कि ये आपके इशारे के तुरंत समझ जाते हैं और बिना वक़्त गवाएं अपना काम शुरू कर देते हैं.
Mr. विजय इस बात को बताने में  में specialize करते हैं कि आप चीजों को क्यों कर सकते हैं?, आप क्यों सफल हो सकते हैं?
Mr. पराजय इस बात को बताने में specialize करते हैं कि आप चीजों  को क्यों नहीं कर सकते हैं?,आप  क्यों असफल हो सकते हैं?
जब  आप   सोचते  हैं  कि मेरी life क्यों अच्छी है तो तुरंत  Mr. विजय  इस  बात को सही  साबित  करने के लिए आपके दिमाग   में  positive thouhts produce करने लगते  है, जो आपके अब तक के जीवन के अनुभवों से निकल कर आती है . जैसे  कि-
  • मेरे पास  इतना  अच्छा  परिवार  है.
  • मुझे चाहने  वाले  कितने  सारे  अच्छे  लोग  हैं .
  • मैं well settled हूँ, FINANCIALLY  इतना  सक्षम  हूँ कि खुश  रह  सकूँ .
  • मैं जो करना चाहता  हूँ वो कर पा रहा हूँ.
  •  etc.
इसके  विपरीत  जब  आप सोचते  हैं  कि मेरी life क्यों अच्छी नहीं  है  ,तो तुरंत  Mr. पराजय   इस  बात को सही  साबित   करने के लिए आपके दिमाग में  negative thoughts produce करने लगते  है. जैसे  कि-
  •  मैं अपनी  life में अभी  तक  कुछ  खास  नहीं  achieve कर पाया
  • मेरी नौकरी  मेरी काबलियत  के मुताबिक़  नहीं  है
  • मेरे साथ हमेशा  बुरा  ही होता  है.
  • etc.
ये दोनों  सेवक  जी जान   से  आपकी  बात का समर्थन  करते  हैं . अब  ये आपके ऊपर  depend करता  है कि आप  इसमें से  किसकी services  लेना  चाहते  हैं . इतना याद रखिये कि इनमे से आप जिसको ज्यादा काम देंगे वो उतना ही मजबूत होता जायेगा और एक दिन वो इस फैक्ट्री पर अपना कब्ज़ा कर लेगा, और धीरे-धीरे दुसरे सेवक को बिलकुल निकम्मा कर देगा.अब आप को decide करना है कि आप किसका कब्ज़ा चाहते हैं- मिस्टर विजय का या मिस्टर पराजय का?
यदि  life को improve करना है तो जितना  अधिक  हो  सके  thoughts produce करने का काम  Mr. विजय  को ही दीजिये . यानि  positive self talk कीजिये . नहीं तो अपने आप ही Mr. पराजय अपना अधिकार जमा लेंगे.
मैंने कई बार is simple but effective technique का use किया  है. मैं अपने thoughts पर हमेशा  नज़र रखता  हूँ और जैसे  ही negative thoughts का production बढ़ने  लगता  है मैं तुरंत  Mr. विजय  को काम  पर लगा  देता  हूँ, यानि  मैं  कुछ  ऐसे  statements खुद  से  बोलता  हूँ जो  positive thoughts की chain बना  देते  हैं  और मैं वापस  track पर आ जाता  हूँ.
For example: जब  मुझे लगता है कि मेरी personal relationships में तनाव आ रहा है तो मैं खुद से कहता हूँ कि भगवान ने  मुझे कितना प्यार करने वाले लोग दिए हैं. और बस आगे का काम मिस्टर विजय कर देते हैं. वो personal relationships से related मेरे सुखद अनुभव को मेरे सामने गिनाने लगते हैं और कुछ ही देर में मेरा mood बिलकुल सही हो जाता है. और जब mood सही हो जाता है तो वो मेरे actions में भी reflect करने लगता है.फिर तो सामने वाला भी ज्यादा देर तक नाराज़ नहीं रह पाता और जल्द ही सारी खटास निकल जाती है और फिर सब अच्छा लगने लगता है.
Thoughts को positive रखने का ये एक बहुत ही practical तरीका है. बस आपको जब भी लगे कि आपके ऊपर negativity हावी हो रही है तो तुरंत उस विचार के विपरीत विचार मन में लाइए. जैसे कि यदि आपके मन में विचार आता है कि आप काबिल नहीं हैं तो तुरन्त इसका उल्टा प्रश्न Mr. विजय से कीजिये कि ,” Mr. Vijay बताइए मैं काबिल क्यों हूँ?” और आप पायेंगे कि आपका ये सेवक आपके सामने उन अनुभवों को रखेगा जिसमे आपने कुछ अच्छा किया हो, for example, आपने कभी कोई prize जीता हो, किसी की मदद की हो, कोई ऐसी कला जिसमे आप औरों से बेहतर हों,etc.
बस इस बात का ध्यान रखियेगा कि आप स्वयं से जो प्रश्न कर रहे हैं वो सकारात्मक हो नकारात्मक नहीं.
आप भी इसे try कर  के देखिये. अपने thoughts पर नज़र रखिये , और जब आपको लगे कि मिस्टर पराजय कुछ ज्यादा ही सक्रीय हो रहे हैं तो जल्दी से कुछ positive self talk कीजिये और मिस्टर विजय को काम पर लगा दीजिये.
दोस्तों मुझे विस्वास है की आपको मेरी यह पोस्ट अछि लगी होगी और मई आगे भी इस तरह की पोस्ट भेजता रहूंगा.
                                                                                 लेखक - बीरेंद्र गुप्ता
Thanks . I hope it works for you. 

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Tuesday 25 August 2015

love is life .




चारों तरफ अजीब आलम हादसों में पल रही है जिंदगी,
फूलों  के  शक्ल में अंगारों  पर चल  रही है  जिंदगी.

आदमी  खूंखार  वहसी  हो  गए हैं इस जमाने में,
दूध साँपों को पिलाकर खुद तड़प रही है जिंदगी.

हमारी कौम ने जो बाग सींचे थे अपना लहू देकर,
उन्हीं बाग के कलियों का मसलना देख रही है जिंदगी.

उजड रहे हैं रोज गुलशन अब कोई नजारा न रहा,
तलवारों खंजरों रूपी दरिंदों से लुट रही है जिंदगी.

अब  तो यातनाओं  के अंधेरों में ही होता है सफर,
लुट रही बहन-बेटियाँ असहाय बन गयी है जिंदगी.

हर पल सहमी-सहमी है घर की आबरू बहन-बेटियाँ,
हर तरफ  हैवानियत का आलम नीलम ही रही है जिंदगी.

चुभती है यह बीरेंद्र को कविता ग़ज़ल सुनाने का न रहा अब हौसला,

 अब तो इस जंगल राज में कत्लगाह बन गयी है जिन्दगी

खूब पढ़े लिखे लोग आखिर पागल क्यों लगने लगते हैं?

जिस तरह पदार्थ सूक्ष्म कणों से बना है, उसी तरह प्रकाश भी सूक्ष्म ऊर्जा कणों से बना है। ये ऊर्जाकण निश्चित मात्रा में प्रवाहित होते रहते हैं। यह पता लगने के बाद पिछले सौ वर्षों में विज्ञान की दुनिया ही बदल दी।

जानकार हैरानी होगी कि इस तथ्य का पता म्यूनिख विश्वविद्यालय से वि‌ज्ञान पढ़ा रहे मैक्स प्लैंक के सपने से हुआ था। इसके बाद तो आकाश में आवाज से भी तेज चलने वाले विमान और अंतर‌िक्ष में विद्युत तंरगों से होड़ लेने वाले यान दौड़ने लगे।

इक्कीस वर्ष की आयु में भौतिक शास्त्र में पीएचडी करने के बाद वहीं पढ़ाने लगे प्लैंक के मन में नया कुछ करने की धुन थी, जिससे मनुष्य जाति कृतकृत्य हो जाए। बीस साल तक वे प्रयोगशाला में शोध प्रयासों में लगे रहे। प्रयोग, परी‌क्षण और अनुसंधान में दिन रात जुटे रह कर भी उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ।
लगभग बीस साल लगे रहने पर भी कोई सार्थक निष्कर्ष नहीं निकल सका था। प्लैंक सोचने लगे थे कि क्या बीस सालों का श्रम यूं ही निरर्थक चला जाएगा। सन् 1900 के अक्टूबर महीने में एक सपने ने उनके सामने वह रहस्य ला कर रख दिया जिसने पदार्थ की तरह ऊर्जा के लोक का भी अस्तित्व सिद्ध कर दिया।

आज हम जिन खोजों, प्रयोगो और आविष्कारों से मनुष्य जाति को समृद्ध होता देख रहे हैं, वह प्लैंक की तरह और लोगों द्वारा भी देखे गए सपनों का चमत्कार है।
1903 में राइट ब्रदर ने हवाई जहाज बना कर उड़ा दिया तो उसकी सूझ भी सपने से ही आई थी। सिलाई मशीन बना लेने के बाद उसकी सूई बनाने की तकनीक भी इलियास होवे के सपने में ही क्लिक हुई थी।

बंदूक की गोलियों, अणु को तोड़कर बम बना लेने और पीढ़ी दर पीढ़ी अपने पुरखों की विरासत साथ लेकर जन्म लेने और अपनी अलग पहचान भी रखने वाले गुणसूत्र (डीएनए) का पता, फिर फेड्रिक ओगस्ट द्वारा बेनजीन जैसा जटिल रासायनिक फार्मूला तैयार करने जैसे चमत्कारों की भी सपने के आभारी ही माना जाता है।
जैम्स वॉटसन जिन्होनें अपने मित्र फ्रांसिस क्रिक के साथ मिलकर डी..नए की खोज की थी, का कहना था कि उन्होंने अपने सपने में ढेर सारी स्पायरल सीढियां देखी थी जिस कारण ये बेहतरीन खोज वे कर पाए।

जो सत्य, तथ्य और रहस्य जागती हुई अवस्था में लाख सिर खपा कर भी हाथ नहीं आते वे सपने की एक झलक से उजागर हो जाते हैं।

इस सचाई का एक ही अर्थ है कि मनुष्य सबसे बड़ा चमत्कार है। अध्यात्म इस निष्कर्ष पर लाकर छोड़ देता है कि एक मनुष्य इतना चमत्कारी हो सकता है तो संसार में फैले छह अरब लोग अपने भीतर क्या क्या संभावनाएं लिए हुए होंगे


जिन्हें आमतौर पर सनकी समझा जाता है, जरूरी नहीं कि वे भटके हुए लोग हों। तथ्य यह सामने आया है कि सनकी समझे जाने वाले लोगों में ज्यादातर प्रतिभाशाली लोग होते हैं। वे सनकी या भटके हुए इसलिए समझे जाते हैं कि उनका व्यवहार, रहन सहन और काम करने का ढंग सामान्य लोगों से अलग होता है।

मिशिगन यूनिवर्सिटी, अमेरिका के मन:शास्त्रविभाग के प्रमुख ओलिवर होम्स की देखरेख में हुए एक अध्ययन के मुताबिक नब्बे से पंचानवे प्रतिशत प्रतिभाशाली लोग व्यक्तित्व से असहज लगते हैं। असहज अर्थात वे दुनियादार और कामयाब लोगों से अलग तरह के होते हैं। यूनिवर्सिटि के करीब 35शोधछात्रों ने प्रो. होम्स के निर्देशन में प्रसिद्ध विभूतियों का अध्ययन किया।
उस अध्ययन के अनुसार प्रतिभावान एक सीमा तक पागल होते हैं। वे अपनी सनक को इस कदर सही मानते हैं कि उन्हें यथार्थता के रूप में अनुभव करने लगते हैं। अध्ययन के अनुसार प्रतिभाशाली व्यक्ति एक सनक की पूर्ति में अपनी समग्र मानसिक चेतना झोंकनी पड़ती है।

इसका परिणाम यह होता है कि विभिन्न प्रयोजनों में काम करने वाली मानसिक क्षमताएं जब एक केन्द्र पर केन्द्रीभूत होती हैं, तो वे उस प्रयोजन में तो असाधारण रूप से सफल होते हैं किन्तु मस्तिष्कीय क्षमता के अन्य क्षेत्र में अविकसित रह जाते हैं। नतीजतन उनके दैनिक जीवन की सामान्य प्रवृत्तियासीमित एवं अस्त-व्यस्त रह जाती हैं।
कोई सर्वांगीण प्रतिभावान नहीं होता वरन् किसी दिशा विशेष में ही उनका चिन्तन तल्लीन रहने से उसी सीमा तक सीमित रह जाता है। फलतः उनके दैनिक जीवन की गतिविधियों को देखकर लोग जहाँ सनकी मानने लगते हैं। वहां उनकी कार्य विशेष में अद्भुतता की छाप भी मानते हैं।

अध्ययन के अनुसार प्रतिभावान व्यक्ति अपने काम इतनी लगन और और उत्साह से करते हैं कि सचमुच पागल नहीं होते। वे अपने कामों को इस लगन और उत्साह से करते हैं कि और तथ्यों की उपेक्षा करने लगते हैं। ऐसे तथ्य जो दूसरों की दृष्टि से किसी सुयोग्य व्यक्ति में अनिवार्य रूप से होने चाहिए।
अध्ययन में फ्रांस के साहित्यकार एलनेजेक्टर डयूमा, मोपासां, वालट स्काट, अंग्रेज कवि शैली आदि का स्वभाव और आदतें शामिल हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक और मनीषी आइन्स्टीन के जीवन की एक घटना का जिक्र भी अध्ययन में किया गया है। घटना बहुतों को पता होगी कि आइंस्टीन एक मित्र के यहां रात्रि भोज पर गए। उन्हें जल्दी वापस लौटना था।

पर वे समझ बैठे कि यह घर मेरा है और मित्र दावत पर आए हैं। वे बार-बार घड़ी देखते। बहुत देर हो गई तो उनने अपने मित्र को पधारने तथा इतना समय देने के लिए धन्यवाद दिया और उन्हें फिर कभी पधारने की बात कहकर विदाई शिष्टाचार निभाया।

जब मित्र हंस पड़े तो उन्हें पता चला कि यह उस मित्र का घर है और यहां में ही निमन्त्रित हूं। आइंस्टीन ही क्या इस तरह की घटनाएं कितने ही प्रतिभाशाली लोगों के बारे में विख्यात है। प्रो. होम्स की मानें तो करीब सभी लोगों के बारे में। कहीं ऐसा तो नहीं कि जितने भी असहज लोग मिलते हैं वे सभी किसी प्रतिभा के धनी हों और उसे निखरने का मौका न मिल रहा हो। इसलिए किसी भी व्यक्ति के सनकी जैसा दिखाई देने पर सावधान रहें।