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Tuesday 25 August 2015

खूब पढ़े लिखे लोग आखिर पागल क्यों लगने लगते हैं?

जिस तरह पदार्थ सूक्ष्म कणों से बना है, उसी तरह प्रकाश भी सूक्ष्म ऊर्जा कणों से बना है। ये ऊर्जाकण निश्चित मात्रा में प्रवाहित होते रहते हैं। यह पता लगने के बाद पिछले सौ वर्षों में विज्ञान की दुनिया ही बदल दी।

जानकार हैरानी होगी कि इस तथ्य का पता म्यूनिख विश्वविद्यालय से वि‌ज्ञान पढ़ा रहे मैक्स प्लैंक के सपने से हुआ था। इसके बाद तो आकाश में आवाज से भी तेज चलने वाले विमान और अंतर‌िक्ष में विद्युत तंरगों से होड़ लेने वाले यान दौड़ने लगे।

इक्कीस वर्ष की आयु में भौतिक शास्त्र में पीएचडी करने के बाद वहीं पढ़ाने लगे प्लैंक के मन में नया कुछ करने की धुन थी, जिससे मनुष्य जाति कृतकृत्य हो जाए। बीस साल तक वे प्रयोगशाला में शोध प्रयासों में लगे रहे। प्रयोग, परी‌क्षण और अनुसंधान में दिन रात जुटे रह कर भी उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ।
लगभग बीस साल लगे रहने पर भी कोई सार्थक निष्कर्ष नहीं निकल सका था। प्लैंक सोचने लगे थे कि क्या बीस सालों का श्रम यूं ही निरर्थक चला जाएगा। सन् 1900 के अक्टूबर महीने में एक सपने ने उनके सामने वह रहस्य ला कर रख दिया जिसने पदार्थ की तरह ऊर्जा के लोक का भी अस्तित्व सिद्ध कर दिया।

आज हम जिन खोजों, प्रयोगो और आविष्कारों से मनुष्य जाति को समृद्ध होता देख रहे हैं, वह प्लैंक की तरह और लोगों द्वारा भी देखे गए सपनों का चमत्कार है।
1903 में राइट ब्रदर ने हवाई जहाज बना कर उड़ा दिया तो उसकी सूझ भी सपने से ही आई थी। सिलाई मशीन बना लेने के बाद उसकी सूई बनाने की तकनीक भी इलियास होवे के सपने में ही क्लिक हुई थी।

बंदूक की गोलियों, अणु को तोड़कर बम बना लेने और पीढ़ी दर पीढ़ी अपने पुरखों की विरासत साथ लेकर जन्म लेने और अपनी अलग पहचान भी रखने वाले गुणसूत्र (डीएनए) का पता, फिर फेड्रिक ओगस्ट द्वारा बेनजीन जैसा जटिल रासायनिक फार्मूला तैयार करने जैसे चमत्कारों की भी सपने के आभारी ही माना जाता है।
जैम्स वॉटसन जिन्होनें अपने मित्र फ्रांसिस क्रिक के साथ मिलकर डी..नए की खोज की थी, का कहना था कि उन्होंने अपने सपने में ढेर सारी स्पायरल सीढियां देखी थी जिस कारण ये बेहतरीन खोज वे कर पाए।

जो सत्य, तथ्य और रहस्य जागती हुई अवस्था में लाख सिर खपा कर भी हाथ नहीं आते वे सपने की एक झलक से उजागर हो जाते हैं।

इस सचाई का एक ही अर्थ है कि मनुष्य सबसे बड़ा चमत्कार है। अध्यात्म इस निष्कर्ष पर लाकर छोड़ देता है कि एक मनुष्य इतना चमत्कारी हो सकता है तो संसार में फैले छह अरब लोग अपने भीतर क्या क्या संभावनाएं लिए हुए होंगे


जिन्हें आमतौर पर सनकी समझा जाता है, जरूरी नहीं कि वे भटके हुए लोग हों। तथ्य यह सामने आया है कि सनकी समझे जाने वाले लोगों में ज्यादातर प्रतिभाशाली लोग होते हैं। वे सनकी या भटके हुए इसलिए समझे जाते हैं कि उनका व्यवहार, रहन सहन और काम करने का ढंग सामान्य लोगों से अलग होता है।

मिशिगन यूनिवर्सिटी, अमेरिका के मन:शास्त्रविभाग के प्रमुख ओलिवर होम्स की देखरेख में हुए एक अध्ययन के मुताबिक नब्बे से पंचानवे प्रतिशत प्रतिभाशाली लोग व्यक्तित्व से असहज लगते हैं। असहज अर्थात वे दुनियादार और कामयाब लोगों से अलग तरह के होते हैं। यूनिवर्सिटि के करीब 35शोधछात्रों ने प्रो. होम्स के निर्देशन में प्रसिद्ध विभूतियों का अध्ययन किया।
उस अध्ययन के अनुसार प्रतिभावान एक सीमा तक पागल होते हैं। वे अपनी सनक को इस कदर सही मानते हैं कि उन्हें यथार्थता के रूप में अनुभव करने लगते हैं। अध्ययन के अनुसार प्रतिभाशाली व्यक्ति एक सनक की पूर्ति में अपनी समग्र मानसिक चेतना झोंकनी पड़ती है।

इसका परिणाम यह होता है कि विभिन्न प्रयोजनों में काम करने वाली मानसिक क्षमताएं जब एक केन्द्र पर केन्द्रीभूत होती हैं, तो वे उस प्रयोजन में तो असाधारण रूप से सफल होते हैं किन्तु मस्तिष्कीय क्षमता के अन्य क्षेत्र में अविकसित रह जाते हैं। नतीजतन उनके दैनिक जीवन की सामान्य प्रवृत्तियासीमित एवं अस्त-व्यस्त रह जाती हैं।
कोई सर्वांगीण प्रतिभावान नहीं होता वरन् किसी दिशा विशेष में ही उनका चिन्तन तल्लीन रहने से उसी सीमा तक सीमित रह जाता है। फलतः उनके दैनिक जीवन की गतिविधियों को देखकर लोग जहाँ सनकी मानने लगते हैं। वहां उनकी कार्य विशेष में अद्भुतता की छाप भी मानते हैं।

अध्ययन के अनुसार प्रतिभावान व्यक्ति अपने काम इतनी लगन और और उत्साह से करते हैं कि सचमुच पागल नहीं होते। वे अपने कामों को इस लगन और उत्साह से करते हैं कि और तथ्यों की उपेक्षा करने लगते हैं। ऐसे तथ्य जो दूसरों की दृष्टि से किसी सुयोग्य व्यक्ति में अनिवार्य रूप से होने चाहिए।
अध्ययन में फ्रांस के साहित्यकार एलनेजेक्टर डयूमा, मोपासां, वालट स्काट, अंग्रेज कवि शैली आदि का स्वभाव और आदतें शामिल हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक और मनीषी आइन्स्टीन के जीवन की एक घटना का जिक्र भी अध्ययन में किया गया है। घटना बहुतों को पता होगी कि आइंस्टीन एक मित्र के यहां रात्रि भोज पर गए। उन्हें जल्दी वापस लौटना था।

पर वे समझ बैठे कि यह घर मेरा है और मित्र दावत पर आए हैं। वे बार-बार घड़ी देखते। बहुत देर हो गई तो उनने अपने मित्र को पधारने तथा इतना समय देने के लिए धन्यवाद दिया और उन्हें फिर कभी पधारने की बात कहकर विदाई शिष्टाचार निभाया।

जब मित्र हंस पड़े तो उन्हें पता चला कि यह उस मित्र का घर है और यहां में ही निमन्त्रित हूं। आइंस्टीन ही क्या इस तरह की घटनाएं कितने ही प्रतिभाशाली लोगों के बारे में विख्यात है। प्रो. होम्स की मानें तो करीब सभी लोगों के बारे में। कहीं ऐसा तो नहीं कि जितने भी असहज लोग मिलते हैं वे सभी किसी प्रतिभा के धनी हों और उसे निखरने का मौका न मिल रहा हो। इसलिए किसी भी व्यक्ति के सनकी जैसा दिखाई देने पर सावधान रहें।

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