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Sunday 4 December 2016

आखिर प्रधानमंत्री जी की सोच युवा सोच क्यों है। ............भागो मत जागो

डेयरी में काम करने वाले मजदूरो का भी कैसा नसीब होता हैं , पाँचो अंगूलिया घी मे रहती हैं फिर भी वह कितना गरीब होता हैं " आज हमारे देश के प्रधानमंत्री जी की भी हालत कुछ ऐसी ही हैं , सत्ता होने के बावजूद भी वो देश हित में उतना योगदान नही दे पा रहे जितना वो देना चाहते हैं, विपक्ष की पार्टिया एवं कुछ देश का हित ना चाहने वाले स्वार्थी लोगो नें ऐसी हालात पैदा कर दी हैं कि प्रधानमंत्री जी उसी मजदूर की भाँति पाँचो अंगूलिया घी में तो हैं फिर भी हालात के आगे वो मजबूर हैं , इसका सबसे बडा कारण हमारी देश की सोच एवं राजनैतिक सविंधान हैं , हमारा देश युवा होने के बावजूद भी युवा नही हैं , क्योकि हमारी सोच युवा नही हैं , किसी ने सच ही कहा हैं कि हमारे देश मे युवा तो पैदा ही नही होते क्योकि जन्म के समय उनका सृजन पुरानी परंम्पराओ एव रूठिवादिता वाली सोच में होता हैं , युवा का मतलब होता हैं नया और नये से बनता हैं नवयुग ,नवनिर्माण आदि, किसी दार्शनिक ने भी कहा हैं कि-freely thinking and thinking about new things is sign of great thinker and civilised person. कितनी अजीब बात हैं कि एक 70 साल का व्यक्ति युवा सोच रखता हैं और हम जैसे युवा पुरानी परम्पराओ में लिप्त हैं, हम सब को युवा सोच रखने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द् भाई मोदी जी का साथ देना चाहिये, मैं ZEE NEWS व उनकी टीम खासकर जी न्यूज के सन्थापक डाँ. सुभाष चन्द्रा एवं सुधीर चौधरी जी आभारी हूँ , जिन्होने हमारा वह हमारे जैसे युवाओ का पथ प्रदर्शन किया एवं समय-समय पर DNA के माध्यम सें हमारी राष्ट्रहित सोच को लोगो से अवगत कराते रहते हैं, अगर हम सब युवाओ की सोच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं राष्ट्र के प्रति सकारात्मक हो जाये तो मुझे पूर्ण विश्वास हैं कि हम सिर्फ देश निर्माण ही नही अपितु वैश्विक स्तर पर विश्व का पथ प्रदर्शन भी कर सकते हैं । -बीरेंद्र गुप्ता संथापक - AWARENESS WITH भागो मत जागो - मुख्य कार्यालय - महात्मा गाँधी लिंक मार्ग, गोपीगंज -221303 भदोही , उत्तर प्रदेश ( भारत )

Saturday 29 October 2016

Happy Diwali-Birendra Gupta

May millions of lamps illuminate your life
with endless joy,prosperity,health & wealth forever
Wishing you and your family a very
"HAPPY DEEPAVALI"




Thursday 23 June 2016

आपको 'सुपरमैन' बनने में मदद करेगा इंसानों की 'तीसरी आंख' का ये रहस्य!

तीसरा नेत्र, जिसने शिव को देवों का देव बना दिया। सिर्फ शिव ही क्यों? हिंदू घर्म, बौद्ध घर्म यहांतक कि चीन के ताओ धर्म की पौराणिक तस्वीरों में भी। तीसरी आंख का जिक्र हुआ है। तो क्या, ये तीसरी आंख सिर्फ किसी की कल्पना है या फिर इंसानों से जुड़ा कोई ऐसा रहस्य, जिसे आप और हम आजतक नहीं समझ पाए। 
मानव विज्ञान के मुताबिक आंखों के ठीक ऊपर और माथे के बीचों बीच एक अद्भुत केंद्र हिस्से में एक ग्रंथि मौजूद है, जिसे पीनियल ग्रंथि कहा जाता है। प्राचीन काल में इंसानोंं के सिर के पिछले हिस्से में वाकई एक तीसरी आंख थी, जिसके वैज्ञानिक सबूत विज्ञान की कई रिसर्च में सामने आ चुके हैं। दरअसल विज्ञान, जिसे पीनियल ग्लैंड कहता है, उसे ही आध्यात्म में आज्ञा चक्र कहा जाता है। वेदों और पुराणों में आपने कुंडलिनी शक्ति का जिक्र सुना होगा। ये आज्ञा चक्र भी कुंडलिनी के सात चंक्रों में से एक है।इंसानों के त्रिनेत्र के रहस्य को सुलझाने के लिए IBN7 की टीम ने एक बड़ी रिसर्च शुरु की। इस तलाश में सिंहस्थ कुंभ का रुख किया। यहां हम कई साधुओं से मिले, हमें कई जानकारियां भी मिलीं, लेकिन हमें जरूरत थी किसी ऐसी शख्सियत की, जिसने अपनी जिद से उन शक्तियों को जागृत किया। उत्तम स्वामी जी महाराज वो शख्सियत थे, जो आज पहली बार इंसानों के उस गूढ़ रहस्य को दुनिया के सामने रखेंगे, जो सिखाएंगे, कि कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने की तकनीक क्या है?
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वैज्ञानिक रिसर्च मानती है कि इंसान अपने दिमाग का करीब 5 से 6 फीसदी हिस्सा ही इस्तेमाल करता है यानी दिमाग का करीब 95 फीसदी हिस्सा ऐसा है, जिसे इंसान आजतक काबू में नहीं कर पाया। जरा सोचिए, अगर आपके पास कोई ऐसी शक्ति हो, जिससे आप दिमाग का 90 फीसदी इस्तेमाल कर पाएं, तो क्या होगा? शायद हम वो नहीं रह जाएंगे, जो अभी हैं विज्ञान की भाषा में समझें, तो इसी ताकत को कुंडलिनी शक्ति कहा गया है।
आध्यात्म के नजरिए से देखें तो शरीर के उस शक्ति केंद्र यानी कुंडलिनी का रिश्ता रीढ़ की हड्डी से जुड़ा है। उत्तम महाराज के मुताबिक कुंडलिनी शक्ति यानी रीढ की हड्डी, इसका जो आकार है वो नाग की तरह है। आध्यात्म में इंसानी शरीर को सात चक्रों में बांटा गया है और इन्हीं चंक्रों में से एक आज्ञा चक्र यानी त्रिनेत्र चक्र है। आध्यात्म मानता है कि आज्ञा चक्र तभी जागृत होगा, जब मूलचक्र को जगाया जाएगा। अब इसे विज्ञान की नजर से देखें तो त्रिनेत्र यानी पीनियल ग्लैंड ही वो जगह है, जहां से इंसान को विचार आते हैं। यही वो जगह है, जो नींद के वक्त सपनों की रूपरेखा बनाती है।
हिप्नोटिज्म यानी सम्मोहन के बारे में तो आप भी जानते होंगे। अक्सर सम्मोहित करने वाले लोग किसी पैंडुलम के सहारे इंसान को अपने वश में करते हैं। अगर आपने गौर किया हो, तो सम्मोहन में वो पैंडुलम इंसान की उसी पीनियल ग्लैंड के पास रखा जाता है ताकि इंसान की ऊर्जा उस ग्रंथि पर इकट्ठा हो जाए और फिर इंसान का दिमाग पूरी तरह काबू में आ जाए।
हमारी रोज मर्रा की जिंदगी में ऐसी बहुत सी बातें हैं, जिनका सीधा रिश्ता उस त्रिनेत्र से है। कभी सोचा है, कि महिलाएं बिंदी क्यों लगाती हैं, बिंदी लगाने का रिवाज शुरू क्यों हुआ? अगर गौर करें, तो बिंदी उसी जगह पर लगाई जाती है, जहां पीनियल ग्लैंड यानी त्रिनेत्र मौजूद है। ऐसा माना जाता है, कि महिलाओं का दिमाग चंचल होता है और उसे काबू में करने के लिए लाल बिंदी का इस्तेमाल किया जाता है। सिर्फ यही नहीं, पुरुषों में चंदन का तिलक लगाने की परंपरा भी इसी से जुड़ी है ताकि चंदन की ठंडक से इंसान का त्रिनेत्र काबू में रहे। यानी हमारे रीति-रिवाजों में, पुरानी परंपराओं में भी त्रिनेत्र की शक्तियों को माना गया। ये बात अलग है कि हम में से बहुत से लोगों को इसकी कोई जानकारी नहीं, लेकिन सवाल अब भी वही है, कि आखिर तीसरी आंख जागृत कैसे होगी? कुडलिनी शक्ति सक्रिय कैसे होंगी और अब वो रहस्य आपने सामने आने वाला है।
कुंडलिनी शक्ति से जुड़े बहुत से मिथक हैं, लेकिन जानकारों की मानें तो कुंडलिनी शक्ति को जगाने के लिए किसी सीक्रेट साधना की जरूरत नहीं होती। उत्तम महाराज ने बताया है कि ये जरूरी नहीं कि आपने स्नान किया हो, कोई भी कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर सकता है, किस मंत्र का प्रयोग किया जा रहा है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
आखिर कुंडलिनी को जागृत कैसे किया जाए?
बस थोड़ा सा योग, थोड़ी सी साधना और विज्ञान की छोटी सी तकनीक उस दिव्य दृष्टि को जगा सकती है। योग, जिसकी ताकत को आप भी पहचानते होंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी योग की एक छोटी सी तकनीक में ही इंसान की सबसे बड़ी शक्ति छिपी है। बस उसी छोटी सी तकनीक के इस्तेमाल से आप कहीं भी, कभी भी कुंडलिनी शक्ति को जगा सकते हैं। उत्तम महाराज के मुताबिक ये बहुत सहज है। कुंडलिनी शक्ति आपने देखा होगा कि छोटे बच्चों का पेट एक इंच ऊपर नीचे होता है, लेकिन जब हम बड़े होते हैं तो हृदय से सांस लेने लगते हैं। सर्वश्रेष्ठ सांस अगर कहीं है, तो वो नाभि है।
विज्ञान के मुताबिक अगर शरीर के मशीन है, तो सांसे उस मशीन की चाबी यानी शरीर की हर प्रक्रिया सांसों से ही जुड़ी है। अक्सर योग के वक्त हम अपनी सांसों को फेफड़ों तक लाकर ही छोड़ देते हैं, लेकिन योग विज्ञान के मुताबिक अगर उन सांसों को शरीर के निचले हिस्से यानी मूलाधार चक्र तक महसूस किया जाए तो इंसान कुंडलिनी शक्तियों को जगाने की तरफ पहला कदम रख सकता है।
उत्तम महाराज ने बताया कि सारी बॉडी का सिस्टम डिपेंड नाभि पर है। श्वांस लंबी होनी चाहिए। नाभि की नीचे तक श्वास आनी चाहिए। रोजाना का श्वास लेते समय, नाभि तक का श्वास आना चाहिए। थोड़ा योग अभ्यास कर लें, अनुलोम विलोम कर लें। मतलब योग के वक्त ध्यान को केंद्रित करना होगा। ये महसूस करना होगा कि हमारी सांसे नाभि के केंद्र तक प्रहार कर रही हैं।
हमारे बताया गया कि अगर कोई इंसान लगातार इस योग का अभ्यास करे। दिन में कहीं भी, कभी भी, इस छोटी सी तकनीक का इस्तेमाल करें तो कुछ वक्त बाद ही इंसान को अपनी शख्सियत में बदलाव महसूस होने लगेगा। धीरे-धीरे आपको महसूस होगा कि आपकी सारी ऊर्जा माथे के इस केंद्र पर आ रही हैं। इस योग साधना से ही आज्ञा चक्र जागृत होगा और आप महसूस करेंगे, कि आपके दिमाग में सिर्फ वही विचार हैं, जो आप चाहते हैं।
दिमाग में सिर्फ वही तस्वीरें उभरेंगी, जो आप देखना चाहते हैं। आपको दूर की आवाज भी साफ सुनाई देगी। आप किसी इंसान को एक नजर देखेंगे और वो आपका दीवाना हो जाएगा। आप पैसा चाहते हैं, मिल जाएगा। आप बीमारी से मुक्ति चाहते हैं, मिल जाएगी। आप तरक्की चाहते हैं, वो भी आ जाएगी। सिर्फ इसलिए क्योंकि अब आप वही करेंगे, जो आप करना चाहते हैं। आपका दिमाग सिर्फ वही बोलेगा, जो आप सुनना चाहते हैं। यही है वो योग, जिसे साधु-संतों को करिश्माई शक्तियां दीं। यही है वो रहस्य, जो दुनिया के हर महामानव की कामयाबी का राज बना।

रोबोट 'एमेलिया' ने शुरू कर दिया काम, इंसानों जैसा कर रही बर्ताव!

लंदन। क्या अब जल्द ही रोबोट इंसानी कामगारों की जगह भरने को तैयार हो चुके हैं? अगर आपका मन अब भी इस बात को न ही कहने वाला है, तो ये खबर पढ़िए। अब इंसानी भावनाओं से लैस रोबोट भी तैयार हो चुके हैं और वो इंसानों के साथ इंसानी काम भी करने लगे हैं। जी हां, ग्रेट-ब्रिटेन यानि यूके के अंदर ही ऐसे रोबोट्स काम करना शुरु कर चुके हैं।
उत्तरी लदंन के एनफील्ड कॉउंसिल में तैनात हो चुके इन रोबोट्स को विकसित किया है आईपीसॉफ्ट नाम की कंपनी ने। इस कंपनी द्वारा तैयार किए गए ऐसे ही रोबोट का नाम एमिलिया है, जो कस्टमर सर्विस देने के साथ ही एडमिन की सेवाएं भी दे रही है। ये इंसानों के साथ बात भी कर सकती है और इंसानों की समस्याओं का समाधान भी बता रही है।

रोबोट
क्या अब जल्द ही रोबोट इंसानी कामगारों की जगह भरने को तैयार हो चुके हैं? अगर आपका मन अब भी इस बात को न ही कहने वाला है, तो ये खबर पढ़िए।

एमेलिया को जो काम दिया गया है, वो अपना काम पूरी तरह से कम रही है। उसे बनाने वाले इंजीनियर का कहना है कि एमेलिया आम बोलचाल की भाषा को समझ सकने में सक्षम है। वो अपने लॉजिक खुद लगा लेती है, साथ ही लोगों की समस्याओं को समझकर उसे दूर भी कर देती है। ये एमेलिया की पहली नौकरी है। जहां सार्वजनिक जगहों पर वो अपना काम कर रही है।
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आईपीसॉफ्ट कंपनी के यूरोपियन सीईओ फ्रैंक लैंसिंक ने कहा कि एमेलिया अपने काम में पूरी तरह से सक्षम है। जो फ्रंटलाइन काम करने में अहम रोल निभाएगी।

.तो सिर्फ 36 घंटे में यूरोप के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लेंगे पुतिन!





नई दिल्ली। सिर्फ 36 घंटे, जी हां 36 घंटे यानि सिर्फ डेढ़ दिन में क्या कोई यूरोप को जीत सकता है। आप सोच में पड़ गए होंगे कि ये क्या बात हुई, लेकिन अमेरिका का एक बड़ा फौजी जनरल ये भविष्यवाणी कर रहा है। उसने साफ कह दिया है कि अगर रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन के सिर में गुस्से का भूत सवार हो गया तो वो सिर्फ 36 घंटे में यूरोप के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लेंगे।
36 घंटे का ये महायुद्ध छिड़ सकता है रूस और नाटो देशों के बीच, वो नाटो जिसका अमेरिका मुखिया है। रूस और अमेरिका दोनों ही हाथों में तबाही का तराजू लेकर एक दूसरे को तौल रहे हैं, जहां एशिया में चीन ने तनाव बढ़ा रखा है वहीं यूरोप में इस वक्त रूस बौखलाया हुआ है। पुतिन को रूस की सरहद पर नाटो देशों की फौज बर्दाश्त नहीं हो रही है, पुतिन ने आज अल्टीमेटम दे दिया, तो उसी वक्त अमेरिकी फौजी जनरल की 36 घंटे की भविष्यवाणी ने अमेरिका को सन्न कर दिया।रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन पेशे से खतरनाक कमांडो रहे हैं। एक ऐसा कमांडो जो आते हुए खतरे को भांप लेता है, जो खुद को छुपा कर दुश्मन पर टूट पड़ने की तैयारी कर लेता है। पुतिन को यूरोप में जुट रहे अपने दुश्मन दिख चुके हैं और इशारों में दुनिया के सुपरपॉवर का ये राष्ट्रपति जंग की धमकी दे रहा है। कह रहा है कि अगर हमें आंख दिखाओगे तो हमारा दूसरा शैतान तुम्हें मिटा देगा। शैतान जिसे अंग्रेजी में SATAN भी कहते हैं। ये है रूस की मिसाइलों की नई रेंज जो बेहद खतरनाक और विनाशकारी है।
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रूस ने SATAN-2 बना ली है और इसी नई मिसाइल ने अमेरिका का सुख चैन छीन लिया है। पुतिन की SATAN-2 से पूरी दुनिया खौफजदा है क्योंकि ये मिसाइल 10 हजार किलोमीटर दूर तक मार करेगी और बेहद तेज गति से 7 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से चलेगी और उसकी रफ्तार के आगे अमेरिकी एंटी-मिसाइल सिस्टम फेल हो जाएंगे। SATAN-2 के बार में सिर्फ दो ही वाक्य काफी है कि SATAN-2 को बीच में मार गिराया नहीं जा सकता, ये एक वार में फ्रांस के आकार के बराबर जमीन खाक कर देगी। SATAN-2 अगर ब्रिटेन पर गिरेगी तो पूरा ब्रिटेन खत्म हो जाएगा, जबकि नीदरलैंड, उत्तरी फ्रांस और बेल्जियम तक असर होगा।
38 घंटे के महायुद्ध की कहानी दरअसल, इसी मिसाइल से शुरू होती है, दिलचस्प बात ये है कि पुतिन के मिसाइल स्टॉक की इस नई मिसाइल को SATAN-2 नाम रूस ने नहीं बल्कि 28 देशों के जंगी गुट नाटो ने दिया है। रूस में तो इस मिसाइल को RS-28 SARMAT कहा जा रहा है। नाटो का नेता कोई भी हो उसके पीछे दिमाग, पैसा और फौजी अमेरिका के सबसे ज्यादा हैं। और बस इसी शैतानी मिसाइल के डर ने अमेरिका की कमान में यूरोप के 28 देशों यानी नाटो को जंग के लिए तैयार कर लिया है।
नाटो (NATO) यानि The North Atlantic Treaty Organisation एक ऐसा फौजी गठबंधन जिसकी नींव 1949 में पड़ी, लेकिन जो हरकत में कुछ साल पहले आया है। कहा जा रहा है कि नाटो के बहाने अमेरिका रूस को दबाने की फिराक में है। खुद रूसी राष्ट्रपति पुतिन भी नाटो से बेतरह चिढ़ते हैं, कुछ दिन पहले रूस की आलीशान विक्ट्री परेड में पुतिन ने नाटो की तुलना असली शैतान से की थी। कहा था कि नाटो छल, कपट का दूसरा नाम है, जो सिर्फ रूस को भड़काता, उकसाता है और रूस की जासूसी, निगरानी के साथ धमकाता भी है। और पुतिन का गुस्सा तो उस वक्त सातवें आसमान पर चला गया जब उन्हें बताया गया कि अमेरिका ने पोलैंड में अपना एंटी मिसाइल सिस्टम तैनात कर दिया है।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के मुताबिक ये अमेरिकी रणनीतिक परमाणु मिसाइलों का हिस्सा हैं। जो पूर्वी यूरोप के कगार पर तैनात हैं। और जो लोग भी इस फैसले का हिस्सा बने हैं वो जान लें कि अब तक वो शांति और सुरक्षा के साथ बिना परेशानी के जीते आए हैं। मगर अब इस मिसाइल रक्षा कवच की तैनाती के बाद हमें सोचना होगा कि हम रूस की सुरक्षा के लिए पैदा हुए खतरे से कैसे निपटें।
पुतिन की वॉर्निंग से खलबली मच गई। पुतिन ने यहां तक कह दिया था कि नाटो देशों का हमलावर रवैया ही रूस को बाल्टिक देशों से लगी अपनी सरहद पर फौज जुटाने पर मजबूर कर रहा है क्योंकि रूस अपनी सीमा से किसी को भी खिलवाड़ नहीं करने देगा। लेकिन, इसी वॉर्निंग के कुछ ही घंटों बाद एक अमेरिकी जनरल चुप नहीं रहा सका। उसने जुबान खोली और वो जो कुछ बोला उसने पूरी दुनिया खास कर नाटो के 28 यूरोपीय देशों को सन्न कर दिया। इस अमेरिकी जनरल ने एक जर्मन पक्षिका डाई जीट में भविष्यवाणी की, उसने कहा कि अगर रूसी राष्ट्रपति पुतिन चाहें तो वो यूरोप के बड़े हिस्से में सिर्फ 36 घंटों में कब्जा कर लें, सिर्फ 36 घंटे यानि डेढ़ दिन में उसने कहा कि जब तक हम अपनी फौज को तैयार करेंगे, रूसी फौज खेल कर चुकी होगी।
नाटो में कमांडर बाल्टिक फोर्स जनरल बेन हॉजेस के मुताबिक अगर रूस ने हमला किया तो नाटो बाल्टिक इलाके के देशों को बचा नहीं सकता। रूस बाल्टिक देशों की राजधानियों को सिर्फ 36 घंटों में जीतने की कूवत रखता है। हम जब तक अपने भारी भरकम सैनिक साजोसामान एक जगह से हटाकर दूसरी जगह तैनात करेंगे, रूस उन देशों को जीत चुका होगा। क्योंकि रूस ने अपनी दक्षिण पश्चिमी सीमा पर नए फौजी डिविजन तैयार कर लिए हैं।
अमेरिकी फौज का जनरल हॉजेस सावधान कर रहा है। उसने साफ कह दिया है कि यूरोप में तैनात नाटो के 67 हजार फौजी तीन बाल्टिक देशों को रूसी हमले से बचा नहीं सकेंगे। आखिर वो कौन से मुल्क हैं, जिन्हें रूसी राष्ट्रपति पुतिन के क्रोध से अमेरिका और नाटो के कुल 28 मुल्क भी बचा नहीं सकेंगे। और आखिर क्यों अमेरिका जैसा महाबलि भी पुतिन के आगे लाचार होता नजर आ रहा है। क्या ये सिर्फ रूसकी नई मिसाइल सैटन-2 की दहशत है या फिर कुछ और।
ये देश हैं एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया  दो देश तो रूस की सरहद से सटे हुए हैं, जबकि तीसरी भी काफी करीब है, ये तीनों देश नाटो का हिस्सा हैं। अमेरिकी जनरल के मुताबिक इन्हें जीतने में रूस को कम से कम 36 और अधिक से अधिक 60 घंटे लगेंगे। यानि अगर ये युद्ध हुआ तो 36 घंटों में ही रूस जीत लेगा।
रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल (रि.) आर एस सिन्हो के मुताबिक ये पूरे यूरोप में तो रूस कब्जा नहीं कर पाएगा, लेकिन खासकर जो बाल्टिक देश हैं जो रूस के सीमा से लगे तीन देश हैं। इनके ऊपर रूस कब्जा कर सकता है, लेकिन उसे दस दफे सोचना पड़ेगा। रूस जो बता रहा है वो नाटो को एक वार्निंग की तरह है।
सवाल ये है कि आखिर एक अमेरिकी जनरल अपने ही देश को मायूस करने वाली भविष्यवाणी क्यों कर रहा था। बताया जा रहा है कि नाटो देशों ने हाल ही में पोलेंड में एक बड़ा युद्ध अभ्यास किया है, और उन्हें अपनी असली औकात एनाकॉन्डा नाम के इस युद्ध अभ्यास में ही पता चल गई।
नाटो कमांडर बाल्टिक फोर्स जनरल बेन हॉजेस के मुताबिक नाटो के फौजियों की हालत अच्छी नहीं है। एक नहीं अनेक दिक्कतों से जूझ रह हैं वे। ता नो उनके रेडियो कम्युनिकेशन सिस्टम ठीक काम करते हैं न ही उनकी ईमेल सुरक्षित हैं। मुझे लगता है कि जो कुछ भी मैं अपने ब्लैकबेरी से लिखता हूं दूसरे लोग भी उसे पढ़ते हैं, उसकी पूरी निगरानी की जा रही है।
पोलैंड में चला युद्ध अभ्यास एनाकॉन्डा में 24 मुल्कों के करीब 31000 फौजियों ने हिस्सा लिया, 7 जून से शुरू हुई ये एक्सरसाइज 10 दिनों तक रूस को, पुतिन को सिरदर्द देती रही। पूरी यूरोप में शीतयुद्ध के बाद से ये सबसे बड़ी फौजी हरकत थी, पोलैंड में अमेरिका, ब्रिटेन समेत 24 देशों की फौजें डटी थीं, नाटो सदस्यों के बीच फौजी तालमेल बढ़ाना। ये था इसका मंत्र, लेकिन असली मंत्र को पुतिन को अपनी ताकत दिखाना था।
अमेरिकी  उप रक्षा मंत्री रॉबर्ट वर्क का कहना है कि रूसी डरते हैं कि कहीं ये मिसाइलें उनके सामरिक बल के लिए खतरा न बन जाएं।
लेकिन सच तो ये है कि नाटो के 28 देशों पर रूस भारी पड़ता नजर आ रहा है। ये देश रूस से बेतरह डरते हैं। ये डर ही था कि नाटो के फौजियों के होने के बावजूद पोलैंड में चले इतने बड़े युद्ध अभ्यास से नाटो का नाम जोड़ने का साहस किसी ने नहीं किया।
रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल (रि.) आर एस सिन्हो ने कहा है कि पिछले साल से नाटो देश और रूस के बीच बाल्टिक इलाके में टेंशन डिवेलप हो रही है। आंतकवादियों और टेररिस्ट के कंट्रोल के मामले में सबसे पहले तो सीरिया में हुआ। उसके बाद यूक्रेन में जो रूस ने जो क्रीमिया के ऊपर कब्जा किया। तभी से ये हालात बने हुए हैं। इसके अलावा नाटो देशों को अमेरिका ने तैयार रहने के लिये कहा कि अगर वाकई में कोल्ड वार सिचुयेशन बन रही है औऱ ये रूस की तरफ से अमेरिका को वार्निंग है।
ये तनाव हर दिन बढ़ता ही जा रहा है। अजीब इत्तेफाक है 1941-45 के बीच दूसरे विश्व युदध् में भी यूरोप का यही इलाका धधकता हुआ जलने लगा था। उस वक्त भी ऐसे ही देशों के बीच गोलबंदी बनी हुई थी। लेकिन, तब इन देशों के पास परमाणु बम नहीं थे। सिर्फ अमेरिका के पास थे जो उसने जापान पर इस्तेमाल किए थे,  लेकिन हकीकत में पूरे यूरोप में उस वक्त एक भी परमाणु संयंत्र नहीं था जबकि अब इस इलाके में 185 परमाणु संयंत्र रात दिन काम कर रहे हैं। ये क्या इत्तेफाक कहा जाएगा कि पुतिन की जुबान पर एक बार फिर दूसरा विश्व युद्ध आ गया।
रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन ने कहा कि हमने हमेशा ही दुनिया को चेताया है खतरनाक लोगों से, एक दौर में सोवियत संघ ने हिटलर को खतरनाक बताया था, लेकिन तब हमारी चेतावनी को सबने नजर अंदाज कर दिया और बाद में पूरी दुनिया इस खतरे से झेली। अब एक बार फिर दूसरे विश्व युद्ध में सोवियत संघ पर नाजी जर्मनी के हमले की उसी तारीख पर रूस एक और खतरे की ओर सबसे ध्यान दिला रहा है। ये खतरा है यूक्रेन में, लेकिन एक बार फिर हमारी बात को गंभीरता से लिया नहीं जा रहा है।
इधर पुतिन ये बयान दे रहे थे उधर नाटो की ओर से ये ऐलान किया जा रहा था कि वो रूस से सटे एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया और पोलैंड की सुरक्षा के लिए चार और बटालियन तैनात करेगा, ताकि रूस के आक्रामक रुख का सामना किया जा सके। शायद नाटो इशारों में ये बताना चाह रहा है कि यही वो चार देश हैं जिनपर एक दौर में सोवियत संघ का राज चलता था। और आज पुतिन को इन देशों पर राज करने की हसरत है।

कश्‍मीर पर ये प्‍लान था इस महान नेता का, हुई श्रीनगर में रहस्‍मयी मौत? ये सच छिपाया नेहरू ने?

डॉ. श्यामाप्रसाद मुख़र्जी की रहस्मयी मौत के तुरंत पश्चात् उस समय के तात्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने नम-नेत्रों से डॉ मुख़र्जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि, “ अपने सार्वजनिक जीवन में वह अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को एवं अपनी अंदरूनी प्रतिबद्धताओं को व्यक्त करने में कभी डरते नहीं थे। ख़ामोशी में कठोरतम झूठ बोले जाते हैं, जब बड़ी गलतियां की जाती हैं, तब इस उम्मीद में चुप रहना अपराध है कि एक-न-एक दिन कोई सच बोलेगा।”
विडम्बना यह है कि तात्कालीन सत्ता के खिलाफ जाकर सच बोलने की जुर्रत करने वाले डॉ. मुखर्जी को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, और उससे भी बड़ी विडम्बना की बात ये है कि आज भी देश की जनता उनकी रहस्यमयी मौत के पीछे की सच को जान पाने में नाकामयाब रही है। डॉ. मुखर्जी इस प्रण पर सदैव अडिग रहे कि जम्मू एवं कश्मीर भारत का एक अविभाज्य अंग है। उन्होंने सिंह-गर्जना करते हुए कहा था कि, “एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान, नहीं चलेगा- नही चलेगा”।
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उस समय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में यह प्रावधान किया गया था कि कोई भी भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू-कश्मीर की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकता। डॉ. मुखर्जी इस प्रावधान के सख्त खिलाफ थे। उनका कहना था कि, “नेहरू जी ने ही ये बार-बार ऐलान किया है कि जम्मू व कश्मीर राज्य का भारत में 100% विलय हो चुका है, फिर भी यह देखकर हैरानी होती है कि इस राज्य में कोई भारत सरकार से परमिट लिए बिना दाखिल नहीं हो सकता। मैं नही समझता कि भारत सरकार को यह हक़ है कि वह किसी को भी भारतीय संघ के किसी हिस्से में जाने से रोक सके क्योंकि खुद नेहरू ऐसा कहते हैं कि इस संघ में जम्मू व कश्मीर भी शामिल है।”
उन्होंने इस प्रावधान के विरोध में भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू व कश्मीर जाने की योजना बनाई। इसके साथ ही उनका अन्य मकसद था वहां के वर्तमान हालात से स्वयं को वाकिफ कराना क्योंकि जम्मू व कश्मीर के तात्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला की सरकार ने वहां के सुन्नी कश्मीरी मुसलमानों के बाद दूसरे सबसे बड़े स्थानीय भाषाई डोगरा समुदाय के लोगों पर असहनीय जुल्म ढाना शुरू कर दिया था।
नेशनल कांफ्रेंस का डोगरा-विरोधी उत्पीड़न वर्ष 1952 के शुरूआती दौर में अपने चरम पर पहुंच गया था। डोगरा समुदाय के आदर्श पंडित प्रेमनाथ डोगरा ने बलराज मधोक के साथ मिलकर ‘जम्मू व कश्मीर प्रजा परिषद् पार्टी’की स्थापना की थी। इस पार्टी ने डोगरा अधिकारों के अलावा जम्मू व कश्मीर राज्य का भारत संघ में पूर्ण विलय की लड़ाई, बिना रुके, बिना थके लड़ी।  इस कारण से डोगरा समुदाय के लोग शेख अब्दुल्ला को फूटी आंख भी नहीं सुहाते थे।
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शेख अब्दुल्ला के दिमाग में जो योजनाएं थींउनके मुताबिक जम्मू व कश्मीर को एक स्वतंत्र राज्य बनाया जा सकता थाजिसका अपना संविधानराष्ट्रीय विधानसभासुप्रीम कोर्ट और झंडा होगा। प्रजा परिषद् के नेताओं ने किसी तरह उस संविधान के प्रारूप की कॉपी हासिल कर ली, जिसके कारण भी वे शेख अब्दुल्ला की नजरो में चढ़ गए। उस समय के तात्कालीन इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रमुख बीएन मलिक ने अपनी किताब माई इयर्स विद नेहरू: कश्मीर में लिखा है कि शेख अब्दुल्ला चाहते थे कि सारे डोगरा कश्मीर छोड़कर भारत चले जाएंऔर अपनी जमीन उन लोगों के लिए छोड़ देंजिन्हें शेख अब्दुल्ला प्राणपन से चाहते थे।
डॉ. मुखर्जी बिना परमिट लिए हुए ही 8 मई, 1953 को सुबह 6:30 बजे दिल्ली रेलवे स्टेशन से पैसेंजर ट्रेन में अपने समर्थकों के साथ सवार होकर पंजाब के रास्ते जम्मू के लिए निकले।  उनके साथ बलराज मधोक, अटल बिहारी वाजपेयी, टेकचंद, गुरुदत्त वैध और कुछ पत्रकार भी थे। रास्तें में हर जगह डॉ.मुखर्जी की एक झलक पाने एवं उनका अविवादन करने के लिए लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ता था। डॉ. मुखर्जी ने जालंधर के बाद बलराज मधोक को वापस भेज दिया और अमृतसर के लिए ट्रेन पकड़ी।
ट्रेन में एक बुजुर्ग व्यक्ति ने गुरदासपुर (जिला, जिसमे पठानकोट आता है) के डिप्टी कमिश्नर के तौर पर अपनी पहचान बताई और कहा कि ‘पंजाब सरकार ने फैसला किया है कि आपको पठानकोट न पहुंचने दिया जाए। मैं अपनी सरकार से निर्देश का इंतज़ार कर रहा हूं कि आपको कहां गिरफ्तार किया जाए?’ हैरत की बात यह निकली कि उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया, न तो अमृतसर में, न पठानकोट में और न ही रास्ते में कहीं और, अमृतसर स्टेशन पर करीब 20000 लोग डॉ.मुख़र्जी के स्वागत के लिए मौजूद थे।
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पठानकोट पहुंचने के तुरंत बाद गुरदासपुर के डिप्टी कमिश्नर, जो उनका पीछा कर रहे थे, ने उनसे मिलने की इजाजत मांगी। उन्होंने डॉ. मुखर्जी को बताया कि उनकी सरकार ने उन्हें निर्देश दिया है कि वे उन्हें और उनके सहयोगियों को आगे बढ़ने दें और बिना परमिट के जम्मू व कश्मीर में प्रवेश करने दें। उस अफसर को खुद हैरानी हो रही थी कि उसे जो आदेश मिलने वाले थे, वे पलट कैसे दिए गए। उसे तथा वहां मौजूद अन्य किसी को भी इस साजिश की जरा भी भनक नहीं थी, जिसके अनुसार डॉ. मुखर्जी को जम्मू व कश्मीर में गिरफ्तार किये जाने की योजना बन चुकी थी ताकि वे भारतीय सर्वोच्च न्यायलय के अधिकार-क्षेत्र से बाहर पहुँच जाएं। उनका अगला ठहराव रावी नदी पर बसे माधोपुर की सीमा के पास चेकपोस्ट था।
रावी पंजाब की पांच महान नदियों में से एक थी, जो पंजाब और जम्मू व कश्मीर की सीमा बनाते हुए बीच से बहती थी। नदी के आर-पार जाने के लिए सड़कवाला एक पुल था, और राज्यों की सरहद इस पुल के बीचों-बीच थी। जैसे ही डॉ.मुखर्जी की जीप ब्रिज के बीच में पहुंची, उन्होंने देखा की जम्मू व कश्मीर पुलिस के जवानों का दस्ता सड़क के बीच में खड़ा है। जीप रुकी और तब एक पुलिस अफसर, जिसने बताया कि वह कठुआ का पुलिस अधीक्षक है, उसने राज्य के मुख्यसचिव का 10 मई, 1953 का एक आदेश सौपा, जिसमे राज्य में उनके प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगाया गया था।
लेकिन मैं जम्मू जाना चाहता हूँ !” डॉ मुखर्जी ने कहा.
इसके बाद उस पुलिस अफसर ने गिरफ्तारी का आदेश अपनी जेब से निकाला, जो पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत जारी किया गया था और जिस पर जम्मू व कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक पृथ्वीनंदन सिंह का 10 मई का दस्तखत था, जिसमे कहा गया था डॉ.मुखर्जी ने ऐसी गतिविधि की है, कर रहे हैं या करनेवाले हैं, जो सार्वजनिक सुरक्षा एवं शांति के खिलाफ है, अतः उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश दिया जाता है।
प्रश्न यह उठता है कि यदि उनकी तथाकथित गतिविधियों से सार्वजनिक सुरक्षा एवं शांति को इतना ही बड़ा खतरा था, तो उन्हें जम्मू व कश्मीर के सीमा में प्रवेश करने से पहले ही क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया जैसा कि गुरदासपुर के डिप्टी कमिश्नर ने डॉ.मुखर्जी को इस बारे में बताया था? उन्हें पठानकोट या उससे पहले ही गिरफ्तार किए जाने की योजना क्यों बदल दी गई? उन्हें आगे बढ़ने ही क्यों दिया गया? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो आज भी अनुत्तरित हैं।
डॉ.मुखर्जी को जिस जगह बंदी बनाया गया था, वह वाकई एक बहुत छोटा सा मकान था, जिसके आसपास कुछ भी नहीं था- निशात बाग़ के करीब, लेकिन श्रीनगर शहर से काफी दूर, जिसे एक उपजेल बना दिया गया था। इस मकान तक पहुंचने के लिए खड़ी सीढियां चढ़नी पड़ती थीं, खासकर उनके ख़राब पैर की वजह से यह और भी मुश्किल हो जाता होगा।
इस मकान का सबसे बड़ा कमरा दस फीट लम्बा और ग्यारह फीट चौड़ा था, जिसमे डॉ.मुखर्जी को बंदी बनाया गया था। वहीं किनारे के दो छोटे-छोटे कमरों में उनके साथ बंद गुरुदत्त वैध और टेकचंद को रखा गया था। शहर से कोई डॉक्टर तभी आ सकता था, जब उसे विशेष रूप से बुलाया जाता। बांग्‍ला भाषा में लिखी गई उनकी द्वारा चिट्ठियों की विशेष अनुवादक द्वारा जांच कराई जाती थी। शेख अब्दुल्ला ने यह आदेश दे रखा था कि डॉ.मुखर्जी को कोई अतिरिक्त सहूलियत तब-तक न दी जाए, जब तक वे खुद आदेश न दें।
इधर, जेल में रहने के दौरान उनके किसी भी दोस्त या रिश्तेदार को उनसे मिलने नहीं दिया गया, यहां तक कि उनके बड़े बेटे अनुतोष की अर्जी भी ठुकड़ा दी गई। वह जेल में प्रतिदिन डायरी लिखा करते थे, जो कि उनके बारे में जानकारी का एक अच्छा स्त्रोत हो सकता था परन्तु शेख अब्दुल्ला की सरकार ने उनकी मौत के बाद उस डायरी को जब्त कर लिया और बार-बार गुजारिश के बावजूद भी अभी तक लौटाया नहीं गया है। 24 मई को पंडित नेहरू और डॉ.कैलाशनाथ काटजू आराम करने श्रीनगर पहुंचे पर उन लोगों ने डॉ.मुखर्जी से मुलाक़ात कर उनका कुशलक्षेम पूछना भी उचित नहीं समझा।
22 जून की सुबह उनकी तबियत अचानक बहुत ज्यादा बिगड़ गई। जेल अधीक्षक को सूचित किया गया। काफी विलम्ब से वह एक टैक्सी (एम्बुलेंस नहीं) लेकर पहुंचे और वह डॉ.मुखर्जी को उस नाज़ुक हालात में भी उनके बेड से चलवाकर टैक्सी तक ले गए। उनके बाकी दो साथियों को उनके साथ उनकी देखभाल करने के लिए अस्पताल जाने की इजाजत नहीं दी गई। उन्हें कोई निजी नर्सिंग होम में नहीं बल्कि राजकीय अस्पताल के स्त्री प्रसूति वॉर्ड में भरती कराया गया।
एक नर्स जो कि डॉ.मुखर्जी के जीवन के अंतिम दिन उनकी सेवा में तैनात थी, ने डॉ.मुखर्जी की बड़ी बेटी सविता और उनके पति निशीथ को काफी आरजू-मिन्नत के बाद श्रीनगर में एक गुप्त मुलाकात के दौरान यह बताया था कि उसी ने डॉ. मुखर्जी को वहां के डॉक्टर के कहने पर आखिरी इंजेक्शन दिया था। उसने बताया कि जब डॉ मुखर्जी सो रहे थे तो डॉक्टर जाते-जाते यह बता कर गया कि, ‘डॉ मुखर्जी जागें तो उन्हें इंजेक्शन दे दिया जाए और उसके लिए उसने एम्प्यूल नर्स के पास छोड़ दिया।’
इस तरह कुछ देर बाद जब डॉ.मुख़र्जी जगे तो उस नर्स ने उन्हें वह इंजेक्शन दे दिया। नर्स के अनुसार जैसे ही उसने इंजेक्शन दिया डॉ.मुखर्जी उछल पड़े और पूरी ताकत से चीखे, ‘जल जाता है, हमको जल रहा है।’ नर्स टेलीफोन की तरफ दौरी ताकि डॉक्टर से कुछ सलाह ले सके परन्तु तब तक वह मूर्छित हो चुके थे और शायद सदा के लिए मौत की नींद सो चुके थे। पंडित नेहरू जो डॉ.मुखर्जी की मृत्यु के दौरान लन्दन में ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ II की ताजपोशी में हिस्सा ले रहे थे, ने बॉम्बे एअरपोर्ट पर उतरने के पश्चात भी इस त्रासदी पर कुछ भी नहीं बोले जिसने उनकी अनुपस्थिति में पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था।
डॉ. मुखर्जी की मां जोगमाया देवी ने नेहरू के 30 जून, 1953 के शोक सन्देश का 4 जुलाई को उत्तर देते हुए पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने उनके बेटे की रहस्मयी परिस्थितियों में हुई मौत की जांच की मांग की। जवाब में पंडित नेहरु ने बड़ी मीठी-मीठी बातें लिखीं, दुखियारी मां के लिए आकंठ करुणा की अभिव्यक्ति की; परन्तु जांच की मांग को ख़ारिज कर दिया।  उन्होंने जवाब देते हुए यह लिखा कि, “मैंने कई लोगों से इस बारे में मालूमात हासिल किए हैं, जो इस बारे में काफी कुछ जानते थे। मैं आपको सिर्फ इतना कह सकता हूं कि मैं एक स्पष्ट और इमानदार नतीजे पर पहुंच चुका हूं कि इसमें कोई रहस्य नहीं है और डॉ.मुखर्जी का पूरा ख्याल रखा गया था।
यहां सबसे बड़ा विचारनीय प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि आखिर पंडित नेहरू ने जांच की मांग को ख़ारिज क्यों कर दिया? क्या उन्हें नैतिक, राजनैतिक या संवैधानिक किसी भी अधिकार के तहत इस प्रकार का फैसला सुनाने का हक था? क्या कोई गुप्त बात थी अथवा इस घटना के पीछे कोई साजिश थी जिसके जांच उपरांत बाहर आ जाने का डर था? ये सारे प्रश्न इसलिए प्रासंगिक हो जाते हैं क्योंकि जब कभी भी एक मशहूर शख्‍सियत की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होती है, अथवा वह गायब होता है, तब एक जांच जरूर होती है। इस तरह के कम से कम तीन कमीशन नेताजी सुभाषचंद्र बोस के गायब होने की जांच करने के लिए बनाए गए।
ये कमीशन थे – शाहनवाज़ कमीशन (1956)जीडी खोसला कमीशन (1970) और मनोज मुकर्जी कमीशन(1999)। महात्मा गांधी की हत्या की जांच कपूर कमीशन नेइंदिरा गांधी कि हत्या की जांच ठक्कर कमीशन ने और राजीव गांधी की हत्या की दो कमीशन जेएस वर्मा कमीशन और एमसी जैन कमीशन ने जांच की।
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यहां यह गौरतलब है कि ये सभी हत्याकांड (नेताजी के गायब होने को छोड़कर) सबके आंखों के सामने हुए; फिर भी कातिलों की पृष्ठभूमि और साजिश का पता लगाने के लिए जांच की गई, लेकिन डॉ.मुखर्जी की अकाल मौत रहस्मयी परिस्थितियों में एक गुप्त जगह में, परिवार और दोस्तों से दूर, एक शत्रुतापूर्ण क्षेत्र में हुई, जहां भारत के सुप्रीम कोर्ट का अधिकार क्षेत्र तक नहीं था, बावजूद इसके आज तक इस घटना की औपचारिकता मात्र के लिए भी एक जांच नहीं हुई है।
क्या यह डॉ.मुखर्जी एवं उनके परिवार के साथ-साथ पूरे देश के साथ एक सरासर धोखा नहीं है? क्या देश की जनता को यह जानने का हक नहीं है कि उसके प्रिय नेता की मौत के पीछे का जिम्मेदार कारक कौन था? कम से कम अभी की वर्तमान सरकार को चाहिए कि इस मामले में एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच समिति का गठन करे और जनता के समक्ष सच्चाई लाने का प्रयास करे क्योंकि यदि यह अभी नही होगी तो फिर कभी नही होगी।